शुक्रवार, 27 मार्च 2009

चाय की लत


आज चाय हमारे भोजन का ऐक अनिवार्य हिस्सा बन गई है। चाय की ऐसी माया है कि उसके बिना दिन अधूरा है। चाय के बिना न तो सरकार चलती है न ही सरकारी काम। बैठक, सभा, अधेवेशन हो या शादी, सगाइ या कोइ उत्सव चाय के बिना पूरे हो ही नही सकते हैं। शादी, सगाइ या और कोई उत्सवो में खाने के बाद पान सुपारी की जगह चाय ने ले ली है। आलम यह है कि अगर हम किसी के यहाँ चाय पीने से मना कर देते हैं तो घरवालों को बुरा लग जाता है।

आखिर चाय में ऐसा है क्या। ध्यान देने वाली बात है कि चाय में कुछ खास है या चाय के मनमोहक, उत्तेजक एवं आकर्षक विज्ञापनों में। जहां तक मुझे याद है आज से 8 से 10 साल पहले तक अक्सर एक से दो महीने के अंतराल पर अखबारों में चाय के दष्परीणामों के लेख निकलते रहते थे। कभी ये रिपोर्ट छपती थी की चाय के लगातार सेवन से फेंफडे खराब होने की संभावना बढ़ती है, चाय से नपुंसकता की संभावना हो सकती है, चाय से दिमाग की नसे कमजोर बनती हैं, चाय के लगातार सेवन से शरीर चाय का आदी हो जाता है, भूख कम लगती है आदि।

लेकिन आश्चर्य है कि अब पिछले कुछ सालों से हमेशा चाय के फायदे ही प्रकाशित होते हैं। चाय पीने से स्फुर्ति आती है, चाय से दिल का दौरा पड़ने की संभावना कम हाती है, चाय से ताकत आती है, चाय से दिमाग मजबूत होता है इत्यादि। क्या वाकई चाय में ये सब गुण हैं या इसका कोइ और ही कारण है। आज चाय बनाने वाली सैकड़ों कंपनियां हैं। चाय लाबी अरबों खरबों रूपये की है। कहीं एसा तो नहीं कि यह चाय लाबी अपने फायदे के अनुसार डाक्टरों की टीम बनवाकर नऐ-नऐ सर्वे करवाकर अपने मनमाफिक रिपोर्ट बनवाकर मीडिया में प्रकाशित करवाकर लोगों को गुमराह कर रही है। पहले जब हम कहीं जाते थे तो लोग चाय की जगह अपनी सामथ्र्य के अनुसार दूध, दही, लस्सी या मही/मट्ठा से स्वागत किया करते थे। जो की सेहत के लिय भी अच्छे रहते हैं। किन्तु आज चाय ने सारे रिवाज़ ही तोड़ डाले।

चाय ने आज बच्चों के पेट से दूध छीन लिया है। चाय ने देश को दूध, घी, दही के मामले में दरिद्र बना दिया। ऐक सामान्य परिवार जिसकी हैसियत 1 लीटर दूध खरीदने की है उसका तीन पाव दूध तो केवल खुद एवं मेहमानों को चाय पीने पिलाने में खर्च हो जाता है फिर बच्चों के लिए एक पाव दूध वह भी पानी वाला बचा। ऐसे में हमारे देश का बच्चा कमजोर नहीं होगा तो क्या होगा।


महीने में जितना दूध, चाय पत्ती, शक्कर एवं ईधन चाय बनाने में खर्च होता है उतने का दूध या शुद्ध घी घरों में खाया जाए तो न सिर्फ बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकाश होगा बल्कि घर के सदस्यों को भी फायदा होगा। हमारे देद्दा का भविष्य मजबूत होगा। देश में फिर से दूध, दही, घी के भण्डार भर जाऐगे एवं इनके दाम भी कम होगे जिससे आम आदमी इन्हें आसानी से खरीद पाऐगा।

चाय वनस्पती कुल से संबध है, चाय गर्म पानी में डालकर दवा की तरह पीने के लिए है। दूध एवं शक्कर मिलाने से चाय चाय रहती ही कहां है यह तो दूध एवं शक्क्रर का घोल है। आज से 40-50 साल पहले जब चाय नई-नई आई थी तब इसे बीमारी में काढ़े के लिए उपयोग किया जाता था। कभी कभार जब घर में अतिथि आते तब ही पिलाया जाता था। धीरे धीरे इसने हमारे शरीर में खाने से भी ज्यादा अनिवार्यता बना ली या हमें अपना प्रत्यक्ष रूप से गुलाम बना लिया। यह हमारे शरीर के लिए नशीली दवाइयों से भी ज्यादा नषीली हो गई है। चाय आज हमारे भारतीय समाज के लिए एक खतरनाक वायरस है।

अगर देखा जाऐ तो तम्बाखू से बड़ा नशा है चाय का। चाय न सिर्फ हमारा खानपान बिगाड़ रही है बल्कि हमारा शरीर भी खराब कर रही है। इसमें कोई दो राय नही की अधिक चाय पीने से कब्जियत होती है एवं पेट खराब होता है। जितनी बार चाय पियेंगे उतनी बार हमारा पेट गर्म होता है इससे हमारा जिगर, यकृत अंतड़िया कई बार गर्म होती हैं एवं कई बार उत्तेजित होती हैं। धीरे धीरे हमारा शरीर कमजोर होने लगता है। हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। हमारी आने वाली नस्ले कमजोर, गुस्सैल, चिड़चिड़े हो रही हैं। हम एक दिन बिना खाना खाए व्रत तो रख सकते हैं किन्तु चाय के बिना नही रह सकते हैं। यह एक नशा नही है तो क्या है जो कि घरों में खुलकर बड़ों के सामने, बल्कि साथ मिलकर किया जाता है। सरकार एवं समाज कुछ करे न करे लेकिन आम आदमी को चाहिऐ कि वो इस पर गंभीरता से सोचें। इसका मतलब यह कतई नही की वे खुद चाय छोड़ें पर जो चाय पीने का मना करते हैं उन पर अपने घर या बाहर चाय के लिए जबरदस्ती दबाब न डालें।

घरों में बनने वाली प्रत्येक चाय में उसे बनाने वाली महिलाओं का कितना रोश, गुस्सा एवं कड़वाहत छुपी होती है। जब महिलाओं या बनाने वाले को चाय पीनी होती है चाय पीने के सामान्य समय तो कोई बात नहीं किन्तु अक्सर जब महिलाऐं घर में नाश्ता, बच्चों का टिफन, बच्चों को नहलाना, घर का काम, पूजा पाठ, नहाना या खाना बनाना, कपड़े धोना, घर की सफाई या अन्य कार्य कर रही होती है तब किसी की भी आवाज़ आती है ’अरे ज़रा 2 कप चाय बनाना’। चाय बनाना कोई बड़ा कार्य नहीं किन्तु एसी स्थिती में महिलाओं को अपने समस्त कार्य छोड़कर चाय बनाना पड़ता है। तब वे अनमने, चिड़चिड़े बड़बड़ाते हुए मन से चाय लाती है तो क्या यह चाय आपको या पीने वाले को सकून देगी।

अगली बार जब हम चाय पियें या किसी को जबरदस्ती पिलाऐ तो एक बार खुद के बच्चों को नहीं तो कम से कम देश के लाखों-करोड़ों गरीब बच्चों की तरफ जरूर देखे जिनके मुंह का दूध छीनकर हमने यह चाय बनाई है।